في عام 1836، كتب بوشكين واحدة من أجمل قصائده عن البيئة الجغرافية لإقليم القوقاز، حملت اسم “القوقاز”. ولم أعثر على ترجمة عربية لهذه القصيدة المهمة، فغامرت وترجمتها بنفسي عام 2017 ، بعد أن أعدت تسميتها إلى “ينابيع الميلاد”. وسأورد هنا الترجمة العربية، وأعقبها بالأصل الروسي؛ لأن في ذلك فائدة لمحبي اللغة الروسية، والمهتمين بها.
القوقاز أمام ناظري. يمتشق السماء فريدًا
أقف فوق الثلج، هنا على حافة الجندل
وهناك، فوق قمة شاهقة بعيدة.. نسرٌ
يحلق في السماء.. ساكنًا بقدر سكوني
ها أنا أشهد ينابيع الميلاد..
وبواكير انهيار الصخور المهيب
من هنا.. ترتحل السحب تحتي
وأمام عيني.. يتوالى سباق جنادل صخبة
ودونها.. جروف عارية صلدة
وبأقدام الجروف طحالب نحيلة وشجيرات جفاف
فإذا الأرض اخضوضرت بين أشجار حسان
وإذا الطيور غردت وتراقصت غزلان
ها هم الناس يتخذون من الجبال بيوتًا
ويسوقون أغنامًا في منحدرات خفيضة
فيهبط الرعاة إلى وديان فسيحة
تارة تتهادى مياه نهر بين شطآن ظليلة
وتارة يعربد نهر آخر في مراتع شرسة
يزمجر ويعوي، كوحش هائج
كأنه رأى فريسة من خلف قضبان قفص حديد
يضرب ضفتيه فكاكًا بلا جدوى من الأسر
وبموج جائع يلعق صخور ضفتيه
هيهات! لا يبلغ الوحش فريسة ولا تقر له نفس
فيعود منكفئًا في صمت مهيب
Кавказ подо мною. Один в вышине
Стою над снегами у края стремнины;
Орел, с отдаленной поднявшись вершины,
Парит неподвижно со мной наравне.
Отселе я вижу потоков рожденье
И первое грозных обвалов движенье.
Здесь тучи смиренно идут подо мной;
Сквозь них, низвергаясь, шумят водопады;
Под ними утесов нагие громады;
Там ниже мох тощий, кустарник сухой;
А там уже рощи, зеленые сени,
Где птицы щебечут, где скачут олени.
А там уж и люди гнездятся в горах,
И ползают овцы по злачным стремнинам,
И пастырь нисходит к веселым долинам,
Где мчится Арагва в тенистых брегах,
И нищий наездник таится в ущелье,
Где Терек играет в свирепом веселье;
Играет и воет, как зверь молодой,
Завидевший пищу из клетки железной;
И бьется о берег в вражде бесполезной
И лижет утесы голодной волной…
Вотще! нет ни пищи ему, ни отрады:
Теснят его грозно немые громады.